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Madhya Pradesh: मध्यप्रदेश लीडरशिप समिट में सरकारी पैसे से भाजपा का कार्यक्रम आयोजित किया गया?

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Madhya Pradesh: बीते 3 और 4 फरवरी को मध्यप्रदेश सरकार के नव निर्वाचित मंत्रियों के लिए 2 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम रखा गया था। भोपाल में आयोजित मध्यप्रदेश लीडरशिप समिट नाम के इस कार्यक्रम को अटल बिहारी वाजपेई सुशासन और नीति विश्लेषण संस्थान (AIGGPA) एवं मुंबई स्थित रामभाऊ म्हाल्गी प्रबोधिनी संस्थान द्वारा मिलकर संचालित किया गया था। इस कार्यक्रम के विषय में मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा,

“माननीय प्रधानमंत्री जी का आग्रह था कि सुशासन की दिशा में हमारे सभी विभागों को काम करना चाहिए…और मंत्रीगणों का भी एक प्रशिक्षण का कार्यक्रम होना चाहिए। मुझे प्रसन्नता है कि आज़ादी के बाद पहली बार हमारी अपनी सरकार के मेरे सहित सभी मंत्री सदस्यों ने इसमें भाग लिया है।” 

इस कार्यक्रम के व्यय एवं प्रशिक्षण सामग्री के विषय में आरटीआई एक्टिविस्ट अजय दुबे द्वारा एक आरटीआई आवेदन किया गया था। इसके जवाब में प्राप्त सूचनाओं के अनुसार सरकारी पैसे से आयोजित इस कार्यक्रम में अत्यधिक पैसा खर्च किया गया। इसके अलावा प्रशिक्षण से सम्बंधित कई सामग्री अब तक आवेदनकर्ता को नहीं उपलब्ध कराई गई हैं। दुबे के अनुसार सरकारी पैसे से बीजेपी का कार्यक्रम आयोजित किया गया है।   

दोनों संस्थानों ने छुपाया सच

अजय दुबे द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत समस्त प्रशिक्षण सामग्री और उसमे हुए खर्च की जानकारी मांगने पर अटल बिहारी बाजपेई सुशासन संस्थान ने जवाब दिया कि प्रशिक्षण सामग्री की जानकारी मध्यप्रदेश सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग के पास है। लेकिन आरटीआई द्वारा ही जब इस ट्रेनिंग के बावत सामान्य प्रशासन विभाग से पूछा गया तो जवाब मिला कि इन खर्चों और ट्रेनिंग सामग्री के विवरण अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन संस्थान के पास हैं। यानि खर्च और प्रशिक्षण सामग्री को लेकर सरकार के दो विभाग अपनी ज़िम्मेदारी एक-दूसरे पर डालते रहे. 

आरटीआई आवेदन और जवाब

2 दिन में 8 लाख से अधिक खर्च

अंततः आरटीआई से प्राप्त जानकारी के अनुसार दो दिवसीय इस कार्यक्रम में लोगों के ठहरने, आने-जाने और भोजन का कुल खर्च 8 लाख 86 हजार 133 रूपये था। इनमें से 7 लाख 50 हज़ार 716 रूपए अकेले बुफे, लंच, और चाय का है। 

खर्च का व्यौरा

इस विषय में अजय दुबे ने कहा 

“मध्यप्रदेश सरकार में 30 मंत्री हैं, 8 लोग प्रशिक्षक के तौर पर आए थे, अगर इसकी संख्या 10 और बढ़ा दें तो भी इन 50 लोगों ने 2 दिन ऐसा क्या खाया जिसका बिल 7 लाख से अधिक जा पहुंचा। इस पर महकमे से आरटीआई द्वारा जानकारी मांगने पर आनाकानी भी गई। आखिर ये कैसा सुशासन है जिसमें पारदर्शिता नहीं है”

मध्यप्रदेश कैबिनेट आधे से अधिक मंत्री सीनियर हैं, उनमें से कई केंद्रीय मंत्रिमंडल का हिस्सा रह चुके हैं। ऐसे में सवाल ये उठता क्या सच में उन्हें ट्रेनिंग की जरूरत थी, और क्या ये 2 दिन की ट्रेनिंग किसी को सुशाषित करने में सक्षम है?    

कार्यक्रम का एजेंडा- ‘भारतीय जनता पार्टी’

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के विषय भी गौर करने लायक हैं। मसलन पहले दिन के कार्यक्रम में एक सत्र था जिसका नाम ‘भारतीय जनता पार्टी की विकास यात्रा- दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिक संगठन बनने के अहम पहलू’ जिस पर शिवप्रकाश जी ने व्याख्यान दिया। दूसरे सत्र का विषय ‘मध्य प्रदेश के विकास में भाजपा का योगदान – पिछले 20 वर्षों की यात्रा’ था, जिसके विशेषज्ञ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वी डी शर्मा थे। पहले दिन के तीसरे सत्र का उन्वान ‘संगठन और विचार परिवार से समन्वय’, जिसके विशेषज्ञ व्ही. सतीश थे। 

सत्र का विषय

वहीं दूसरे दिन के कार्यक्रम में एक सत्र ‘अन्य भाजपा संचालित राज्य सरकारों की सफल योजनाएं’ था जिसके विशेषज्ञ विनय विनय प्रभाकर सहस्रबुद्धे थे। इसी दिन एक सत्र ‘अन्य भाजपा संचालित राज्य सरकारों की सफल योजनाएं’ था। एक अन्य सत्र ‘चुनाव प्रबंधन’ था, जिसकी जिम्मेदारी मध्यप्रदेश के चुनाव प्रभारी महेंद्र सिंह को दी गई थी। 

अतिथियों की सूची

यह एक सरकारी कार्यक्रम था जिसका लक्ष्य मंत्रियों को सुशासन सिखाना था। इसका खर्च भले ही जनता के पैसे से निकाला गया, लेकिन इस कार्यक्रम का एजेंडा पार्टी विशेष की गतिवधियों और प्रसार पर केंद्रित था। 

अतः मध्य प्रदेश सरकार के कथित प्रशिक्षण कार्यक्रम को लेकर कई सवाल हैं. यह याद रखने वाली बात है कि इस कार्यक्रम का खर्च राजकीय कोश से किया गया था. यह खर्च ऐसे समय में किया गया है जब सरकार पर पहले से ही 42 हज़ार 500 का क़र्ज़ है. इसके बावजूद प्रशिक्षण सरकारी न होकर केवल पार्टी विशेष तक सिमटता हुआ दिखता है. उस पर भी व्यय में पारदर्शिता का आभाव सुशासन पर प्रश्न चिन्ह लगाता है. 

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